05-10-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

सम्पूर्णता की निशानी 16 कलायें

सभी के पुरूषार्थ का लक्ष्य कौनसा है? (सम्पूर्ण बनना) सम्पूर्णता की स्टेज किसको कहा जाता है? कौनसा नक्शा सामने है जिसको सम्पूर्ण स्टेज समझते हो? बाप ने भी जो सम्पूर्ण स्टेज धारण की उसमें क्या बातें थीं? जब दूसरों को सुनाते हो तो सम्पूर्ण स्टेज का क्या-क्या वर्णन करते हो? उन्हों को समझाती हो ना कि इस नॉलेज द्वारा सर्व गुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी बनते हैं। यह सम्पूर्ण स्टेज वर्णन करती हो ना। भविष्य में तो प्राप्ति होगी, लेकिन सम्पूर्ण स्टेज तो यह कहेंगे ना। आत्मा में बल तो अभी से भरेगा ना। 16 कला सम्पूर्ण कहा जाता है, तो कलाएं अभी भरेंगी ना। सर्व र्गुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी, 16 कला सम्पूर्ण, यह शब्द कहते हो ना। यह सम्पूर्ण स्टेज है। सर्व गुण क्या हैं, वह तो समझते हो गुणों की लिस्ट है। परन्तु यह जो 16 कला कहा जाता है, उनका भाव-अर्थ क्या है? यह है सम्पूर्ण स्टेज की निशानी। जैसे देखा - किसमें कोई भी विशेषता होती है तो कहने में आता है ना इनमें यह कला है। किसी में रोते हुए को हंसाने की कला अर्थात् विशेषता होती है, कोई में हाथ के सफाई की कला, कोई में बुद्धि के चमत्कारी की कला होती है ना। तो यह 16 कला सम्पूर्ण अर्थात् उसका जो भी कर्म होगा वह हर कर्म कला के समान दिखाई देगा। उनकी हर चलन - देखना, बोलना, चलना जैसे कला के माफिक दिखाई देगा। जैसे कोई की कला को देखने लिए कितना रूची से जाते हैं। इस रीति से जो सम्पूर्ण स्टेज को प्राप्त हुई आत्माएं होती हैं उनकी हर चलन कला के रूप में होती है और चरित्र के रूप में भी हो जाती है। तो विशेषता हुई ना। जैसे साकार के बोलने में, चलने में, सभी में विशेषता देखी ना। तो यह कला हुई ना। उठने-बैठने की कला, देखने की कला, चलने की कला थी। सभी में न्यारापन और विशेषता थी। हर कर्म कला के रूप में प्रैक्टिकल में देखा। तो 16 कला अर्थात् हर चलन सम्पूर्ण कला के रूप में दिखाई दे, इसको कहते हैं 16 कला सम्पूर्ण। तो सम्पूर्ण स्टेज की निशानी यही होगी जो उनका हर कर्म कला के माफिक दिखाई देगा अर्थात् उसमें विशेषता होगी। इसको कहते हैं सम्पूर्ण स्टेज।

तो 16 कला सम्पूर्ण बनने का जो लक्ष्य रखा है उसका स्पष्टीकरण यही है। यह चेक करना चाहिए कि - ‘‘मेरे देखने में कला है? मेरे बोलने में कला भरी हुई है?’’ वैसे कहते हैं - कला-काया ही चट हो गई है। तो कला एक अच्छी चीज होती है। कला-काया खत्म हो गई है अर्थात् कर्म में जो आकर्षण करने की शक्ति है, विशेषता है वह खत्म हो गई। तो हर कर्म हमारा कला के समान है वा नहीं - यह चेक करना है। जैसे कोई बाजीगर होते हैं, तो वह जितना समय बाज़ी दिखाते हैं उतना समय हर कर्म कला के रूप में दिखाई देता है। चलते कैसे हैं, चीज़ कैसे उठाते हैं - वह सभी कला के रूप में नोट करते हैं। तो यह संगमयुग विशेष कर्म रूपी कला दिखाने का है। सदैव ऐसा महसूस हो कि हम स्टेज पर हैं। ऐसे 16 कला सम्पूर्ण बनना है। जिसका हर कर्म कला के रूप में होता है उनके हर कर्म अर्थात् गुणों का गायन होता है, इसको दूसरे शब्दों में कहा जाता है हर कर्म चरित्र समान। जिस कला के रूप को देख औरों में भी प्रेरणा भरती है। उनके कर्म भी सर्विसएबल होते हैं। जैसे कोई कला दिखाते हैं, तो कला कमाई का साधन होता है। इस रीति से वो जो हर कर्म कला के रूप में करते हैं, उनके वह कर्म अखुट कमाई के साधन बन जाते हैं और दूसरों को आकर्षण करते हैं। हर कर्म कला के रूप में होगा तो वह एक चुम्बक बन जायेगा। आजकल के जमाने में कोई छोटे-मोटे कला दिखाने वाले भी रास्ता चलते कला दिखाते हैं तो सभी इकट्ठे हो जाते हैं। यह तो है श्रेष्ठ कला। तो क्या आत्माएं आकर्षित नहीं होंगी? अभी इतने तक चेकिंग करनी है। जो भी श्रेष्ठ आत्माएं बनती हैं उनके हर कर्म के ऊपर सभी का अटेन्शन रहता है, क्योंकि उनके हर कर्म में कला भरी हुई है। तब तो हर कर्म के कला का मंदिरों में पूजन होता है। जो बड़े-बड़े मंदिर होंगे उनके उठने के चरित्र का दर्शन अलग होगा, सोने का अलग होगा, खाने का अलग, नहाने का अलग होगा। बहुत थोड़े मन्दिर जहाँ सभी कर्मों के दर्शन होते हैं। उसका कारण क्या है? क्योंकि हर कार्य कला के रूप में किया, इसलिए यादगार चलता है। साकार में भी हर कर्म को देखने की रूचि क्यों होती है? इतने वर्ष साथ रहते हुए, जानते हुए, समझते हुए, देखते हुए भी फिर-फिर देखने की रूचि क्यों होती है? एक कर्म भी देखना मिस नहीं करना चाहते थे। जैसे जादूगर कला दिखाते हैं तो समझते हैं - एक बात भी मिस की तो बहुत कुछ मिस होगा। क्योंकि उनके हर कर्म की कला है। इस रीति यह भी देखने की इच्छा रहती थी कि देखें कैसे सोये हुए हैं। सोने में भी कला थी। हर कर्म में कला थी। इसको कहते हैं 16 कला सम्पूर्ण। अच्छा, ऐसी स्टेज बनी है। लक्ष्य तो इसी स्टेज का है ना? लक्ष्य से लक्षण धारण करने पड़ेंगे। हर कर्म कला के रूप में होता रहे। तो 16 कला सम्पूर्ण बनने से सर्व गुणों की धारणा भी आटोमेटिकली हो जायेगी। अच्छा।